वर्षों से आदिवासी कल्याण के लिए अतुलनीय काम कर रहे एक आम इंसान के निःस्वार्थ सेवा की कहानी टेलिविजन पर देखकर देश आश्चर्यचकित हो उठा। हर कोई ये जानना चाहता था आखिर कौन हैं ये जो इतना कुछ कर गया और देश इनसे अनभिज्ञ रहा। लोगों की दिलचस्पी इस बात में न थी कि ये कितना जीतेंगे बल्कि हर पल यह जानने को आतुर थे की उनके बारे में क्या बताया जा रहा है। कैसे किया होगा इतना बड़ा काम, इस सवाल के जबाब के लिए बैचैन थे।
एक डॉक्टर जो अपना सर्वस्व छोड़कर बन बैठा वनवासी और पैंतालिस वर्ष से करता आ रहा है आदिवासीयों की सेवा उनका नाम है, डॉं. प्रकाश बाबा आम्टे। डॉं. प्रकाश सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आम्टे के पुत्र हैं। बाबा आम्टे गाँधीवादी सिद्धान्तों के पक्षधर थे तथा महाराष्ट्र के कुष्ठरोगियों के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। अपने पिता के मार्ग पर चलकर हीं प्रकाश आम्टे भी सामाजिक कार्यों में सक्रिय हुए और आदिवासी कल्याण के लिए जीवन को समर्पित कर दिया।
शहरीकरण के दौर में सदियों से जंगलों और दूरस्थ निर्जन इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के हिस्से आजादी के सत्तर साल बाद भी न तो उतना विकास हुआ और न हीं बदलाव आया। मुलभूत सुविधाओं के अभाव में जल जंगल और जमीन के लिए संघर्ष कर रहे जंगलवासियों में से एक है माडिया गौंड़ जनजाति। यह जनजाति पूर्वी महराष्ट्र में आन्ध्र प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ राज्यों की सीमा पर डेढ़ सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में घने जंगल के बीच बसे हैं। इन्ही माडिया गौंड़ जनजाति के कल्याण के लिए प्रकाश अपने पिता बाबा आम्टे की प्रेरणा पाकर अपनी पत्नी मंदाकिनी आम्टे के साथ दिन-रात जुटे रहे। दोनो जंगल में हीं अपना आनन्दवन आश्रम बनाकर रहने लगे और उस क्षेत्र के आदिवासियों को चिकित्सा के साथ विकास की धारा से जोड़ने के लिए प्रयासरत्त रहे। इनके पिता बाबा आम्टे के साथ एल्बर्ट श्वित्ज ने आदिवासियों की स्वास्थ्य तथा शिक्षा की आवश्यकताओं के लिए लोक बिरादरी प्रकल्प पहले से खोला हुआ था और ये भी उससे जुड़ गए।
डॉ. प्रकाश ने नागपुर के जी.एम.सी. से मेडिकल में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री ली और शहर में प्रेक्टिस शुरू कर दी। लेकिन 1974 में उन्हें उनके पिता का सन्देश मिला कि उन्हें आदिवासियों के हित में उन्हीं आदिवासियों के क्षेत्र में पहुँचकर काम शुरू करना है। पिता के आदेश पर प्रकाश ने अपनी नवविवाहिता पत्नी डॉक्टर मंदाकिनी आम्टे को साथ लिया और हेमाल्सका आ गए। उनकी पत्नी मंदाकिनी भी पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर थीं और एक सरकारी अस्पताल में कार्यरत्त थीं वो भी नौकरी छोड़कर हेमाल्सका के लिए चल पड़ीं।
हेमाल्सका में आकर प्रकाश दम्पति ने एक बिना दरवाजे की कुटिया बनाई और वहाँ बस गए, जहाँ न बिजली थी । दोनों ने माडिया गौंड आदिवासियों को चिकित्सा तथा शिक्षा देने का बीड़ा उठाया। स्थानीय आदिवासी बेहद शर्मीले तथा संकोची स्वभाव वाले थे और उनका इन लोगों पर विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन प्रकाश तथा मंदाकिनी ने हार नहीं मानी। उन दोनों ने उन आदिवासियों की भाषा सीखी और धीरे-धीरे उनसे संवाद बनाकर उनका विश्वास जीतना शुरू किया। ये लोग एक पेड़ के नीचे अपना दवाखाना लगाते । इनकी कुशल चिकित्सा से आदिवासी ठीक होने लगे और आदिवासियों के बीच अपनी जगह बनाते चले गए। साल 1975 में स्विट्जरलैण्ड की वित्तीय सहायता से हेमाल्सका में एक छोटा-सा अस्पताल बनाया जिसमें बेहतर चिकित्सा संसाधन उपलब्ध हो सका । मलेरिया, तपेदिक, पेचिश-दस्त तथा साँप-बिच्छू आदि के काटे का इलाज भी बेहतर ढंग से शुरू हुआ। आदिवासियों के जीवन के अनुकूल यथा सम्भव अस्पताल का काम-काज चलता रहा और सारी सुविधाएं निःशुल्क दी गई । मुफ़्त चिकित्सा के साथ-साथ वहाँ एक मातृत्व सदन की स्थापना की जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा भी दी जाती है। स्थानीय लोग भी प्रशिक्षण पाकर ‘पैदल डॉक्टरों’ की भूमिका निभाते हुए प्राथमिक चिकित्सा आस-पास के इलाकों पर पहुँचाते हैं ।
निरक्षरता के कारण आदिवासी अक्सर ठगे जाते थे, प्रकाश तथा मंदाकिनी ने इस बात को समझा और आदिवासियों को उनके अधिकारों की जानकारी देनी शुरू की । साल 1976 में हेमाल्सका में एक स्कूल की स्थापना की। पहले तो माडिया गौंड जाति के लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने में हिचकते थे, लेकिन समय के साथ स्कूल ने विकास किया तथा आदिवासियों को पढ़ाई-लिखाई के साथ काम-धन्धे से सम्बन्धित शिक्षा भी देनी शुरू कर दी। हेमाल्सका स्कूल ने इन आदिवासियों को खेती-बाड़ी, फल-सब्जी उगाना तथा सिंचाई आदि की जानकारी दी तथा इन्हें वन संरक्षण के बारे में भी समझाना शुरू किया। वन संरक्षण में आदिवासियों को वन्य पशुओं के संरक्षण का भी समझाना शुरू किया। वन संरक्षण में आदिवासियों को वन्य पशुओं के संरक्षण का भी महत्त्व समझाया गया। आम्टे दम्पति ने हेमाल्सका में लावारिस पशुओं की देख-भाल के लिए एक स्थान भी बनाया, जिससे पशुओं का जीवन सुरक्षित रहने लगा। इस समय से आदिवासियों का पशुओं को भोज्य पदार्थ की तरह प्रयोग करना कम होने लगा। वह अनाज तथा खेती की उपज पर निर्भर होना सीखने लगे । प्रकाश ने जंगली जानवरों के लिए एक एनिमल पार्क भी बनाया है, जहां अनाथ हो चुके छोटे जंगली जानवरों को रखा जाता है।
प्रकाश आम्टे को असधारण व्यक्तित्व का इंसान कहा जाता है। वो अपने सरल जीवन-शिल्प तथा व्यवहार से आदिवासियों के बीच आदर्श स्थापित करने में सफल रहे, आदिवासियों के बीच वो उन्हीं के जैसा बनते चले गए। साल 2014 में प्रकाश आम्टे पर “डॉं. प्रकाश बाबा आम्टे: द रियल हीरो” के नाम से एक फिल्म भी बनाई गई। डॉं. आम्टे सचमुच में एक ऐसे आदर्श पुरुष हैं जिन्हे हीरो कहा जा सकता है।
(विकास सिंह)