जानिए क्या है जुवेनाइल जस्टिस एक्ट । What is Juvenile Justice Act

जानिए क्या है जुवेनाइल जस्टिस एक्ट । What is Juvenile Justice Act

देश भर में जुवेनाइल जस्टिस बिल को लेकर हो रहे चर्चे के बीच सोशल वर्करों एवं समाज विज्ञान के छात्रों के लिए यह जानना जरुरी है कि क्या है जुवेनाइल जस्टिस बिल और इस बिल से कैसे कसेगा नाबालिग अपराधियों पर शिकंजा ।

कानूनी दृष्टिकोण से किसी बच्चे द्वारा कोई ऐसा कृत्य किया जाता है जो कि कानून-विरोधी है, तो उसे किशोर अपराध या बाल अपराध कहते हैं। यह बाल अपराध 8 वर्ष से अधिक तथा 16 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया हो। भारत में बाल अधिनियम की जगह पर 1986 में पहली बार जुवेनाइल जस्टिस एक्ट बना| इसके अनुसर 16 वर्ष तक की आयु के लड़कों एवं 18 वर्ष तक की आयु की लड़कियों के अपराध करने पर बाल अपराधी की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है। बाल अपराध की अधिकतम आयु सीमा अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग है। जुवेनाइल एक्ट (Juvenile Justice) क्या है? इसके बारें में यहां विस्तार से पढें|

जुवेनाइल एक्ट क्या है (Juvenile Justice Kya Hai):
वह व्यक्ति जुवेनाइल माना जाता है, जिसकी आयु 18 साल से कम है| भारतीय दंड संहिता के अनुसार एक बच्चे को किसी भी अपराध के लिए तब तक सजा नहीं दी जा सकती, जब तक कि उसकी उम्र कम से कम 7 वर्ष न हो| सरकार ने अगस्त 2014 में लोकसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल को पेश किया था| नए संशोधन में उम्र को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दिया गया है।

वर्तमान में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 इस बात की रूपरेखा निर्धारित करता है, कि जो बच्चे कानून को अपने हाथ में लेते हैं और जिन्हें देखभाल और संरक्षण की जरूरत है, उनके साथ किस तरह से पेश आया जाए। नए विधेयक के तहत 16 वर्ष से अधिक उम्र के किशोर अपराधियों को व्यस्क मानने का प्रावधान है। विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक, जघन्य अपराधों में लिप्त पाए गए किशोर अपराधियों को जेल की सजा दी सकती है। हालांकि उसे उम्र कैद या फांसी की सजा नहीं होगी। जबकि मौजूदा कानून के तहत किशोर की उम्र 16 की बजाय 18 वर्ष की थी।

यदि किसी आरोपी की उम्र 18 साल से कम होती है, तो उसका मुकदमा अदालत की जगह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में चलता है। दोषी पाए जाने पर किशोर को अधिकतम तीन साल के लिए किशोर सुधार गृह भेजा जाता है। कानून में बदलाव के बाद रैंगिग जैसे अपराध में पाए जाने वाले 16 वर्ष से ज्यादा के दोषी को तीन साल की सजा और 10,000 रुपए तक का जुर्माना लग सकता है।

बिल में संशोधन की आवश्यकता (Bill Amendment Required):
जुवेनाइल जस्टिस बिल में प्रावधान है, कि रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराध करने वाले 16-18 साल के अपराधियों पर वयस्कों की तरह मामला चलाया जाए| ऐसा पाया गया कि जुवेनाइल जस्टिस कानून 2000 में कुछ प्रक्रियागत और कार्यान्वयन के लिहाज से खामियां थीं| वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक उन अपराधों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा था, जिनमें शामिल लोगों की उम्र 16 से 18 साल के आसपास थी| एनसीआरबी का डेटा यह बताने के लिए काफी था कि 2003 से 2013 के बीच ऐसे अपराध में इजाफा हुआ है| इस दौरान 16 से 18 साल के बीच के अपराधियों की संख्या 54 फीसदी से बढ़कर 66 फीसदी हो गई|

जुवेनाइल एक्ट में संशोधन(Amendment of Juvenile Act):
जुवेनाइल एक्ट में किये गये संशोधन के अनुसार किसी नाबालिग के खिलाफ यदि कोई आपराधिक मामला चल रहा हो और अधिकतम छह माह की अवधि के भीतर मामले का निस्तारण नहीं कर लिया गया हो, ऐसी स्थिति में उस मामले को हमेशा के लिए बंद करना होगा। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (जेजे एक्ट) में इस तरह का प्रावधान किया गया है। इसके बाद उस नाबालिग का कोई भी आपराधिक इतिहास रखने की बजाय नष्ट कर दिए जाने का प्रावधान है। इस प्रावधान के पीछे मंशा यह है कि नाबालिग की नई जिंदगी पर पिछले आपराधिक इतिहास का कोई प्रभाव नहीं पड़े। साथ ही उसकी पुरानी गलतियां उसकी नौकरी व प्रगति में कोई अड़चन न आये।

अधिकतम सजा तीन साल की (Maximum Three Years Punishment):
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (जेजे एक्ट) Juvenile justice act के अंतर्गत नाबालिग द्वारा किए गए अपराध की सुनवाई की जाती है। राज्य के सभी जिलों में इसके लिए अदालतें बनाई गई हैं। किसी भी अपराध के लिए नाबालिग को अधिकतम तीन साल की सजा दी जा सकती है। इस दौरान सुधार और देखरेख के लिए उसे संप्रेक्षण गृह में रखा जाता है। जेजे एक्ट में नाबालिग के खिलाफ चल रहे मामले की सुनवाई के लिए अवधि निर्धारित की गई है। अधिकतम छह माह में नाबालिग के खिलाफ मामले का निष्पादन नहीं होता है, तो पूरी कार्यवाही को बंद कर दिया जाता है।

सोशल रिपोर्ट बनाये जानें का प्रावधान (Provision of Preparing Social Report):
जब किसी भी नाबालिग के विरुद्ध मामला चल रहा होता है, उस दौरान लीगल कम प्रोबेशन ऑफिसर बच्चे के परिवार की सोशल जांच रिपोर्ट तैयार करते है। इसमें उस नाबालिग के परिवार की पूरी जानकारी ली जाती है। इसमें उसके परिवार, रिश्तेदार और माहौल के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है और इस बात का भी ध्यान रखा जाता है, यदि नाबालिग को जमानत दी जाती है, तो भावी माहौल में उसका जीवन बर्बाद न हो जाए।

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