(स्वतंत्र टिप्पणीकार मानवेन्द्र सिंह द्वारा नई शिक्षा नीति का विश्लेषण)
भारत सरकार ने बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति 2020 को लागू किया कर दिया गया है. पहली शिक्षा नीति 1986 में लागू किया गया था, चौंतीस वर्षों के लंबे कालखंड में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बदलाव देखने को मिले हैं, नई शिक्षा नीति के माध्यम से समाज में समतापरक और रोजगारपरक शिक्षा विद्यार्थियों को दी जा सकेगी. हमें यहां आंकलन करना होगा कि पिछली शिक्षा नीति 1986 में बदलाव क्यों आवश्यक था, और वर्तमान शिक्षा नीति किसा उद्देश्य को लेकर बनाई गई है, क्या वह उन उद्देश्य को पूरा कर पाएगी ?
चौंतीस वर्षों पुरानी शिक्षा नीति में बदलाव आवश्यक था और यह समय की मांग थी कि शिक्षा नीति को वर्तमान समय के अनुरूप किया जाए, 1986 की पुरानी शिक्षा नीति की बात करें तो इस नीति में सारे देश के लिए एक समान शिक्षकों को स्वीकार किया गया और अधिकांश राज्यों ने 10+2 को अपनाया. इस शिक्षा नीति के माध्यम से लड़कियों अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों को को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध करवाएं, क्योंकि तत्कालीन समय में शिक्षा सभी वर्गों तक नहीं पहुंची थी. उस समय साक्षरता निम्न स्तर पर थी. इस नीति से व्यवसायिक व तकनीकी शिक्षा को महत्व दिया गया है. इसके IITs, IIMs व अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को अधिक सुदृढ़ किया गया है. देश के प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय खोलने, माध्यमिक शिक्षा को रुचिकर बनाने के साथ-साथ नए मुक्त विश्वविद्यालय खोले जाएगें जिससे विद्यार्थियों की पहुंच उच्च शिक्षा तक हो सकेगी.
शिक्षकों के स्तर पर भी बदलाव देखने को मिला है, उनके वेतन, कार्यशैली व उनके प्रशिक्षण आदि के स्तरों पर गुणात्मक परिवर्तन किया गया है. लेकिन हमें समझना होगा 1986 की समय के साथ-साथ संयोजन स्थापित नहीं कर सकी इस कारण यह उच्च कोटि की शिक्षा नीति समय के साथ अप्रासंगिक होती तली चली गई. पुरानी शिक्षा नीति ने तो साक्षरता में बृद्धि की वेकिन उसी अनुपात में रोजगार में वृद्धि नहीं हुई.
वर्तमान समय में एक नया ग्लोबल स्टैंडर्ड तय हो रहा है, हमें अपने छात्रों को ग्लोबल बनाना है हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि ग्लोबल बनने के साथ-साथ अपनी संस्कृति और अपनी जड़ों से बा वे जुड़े रहें। राष्ट्रीय विचारों की अनुभूति भारतीय छात्रों के विचारों में देखने को मिले। देश में शिक्षा की गुणवत्ता विश्वस्तरीय हो, इनोवेशन रिसर्च आदि को बढ़ावा मिले और राष्ट्रीय को नॉलेज सुपरपावर बनाया जा बनाए सके. इस हेतु हमें नई शिक्षा नीति की अत्यंत आवश्यकता थी. इन सभी क्षेत्रों में शिक्षा नीति 1986 खरी नहीं उतरती थी. वर्तमान शिक्षा नीति में इन सभी विषयों के साथ विशेष तौर पर रोजगारपरक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई शिक्षा नीति पर आधारित कार्यक्रम में देशवासियों को इस नई शिक्षा नीति के महत्व को बहुत विस्तार से बताया भी है. उन्होंने कहा कि अभी तक जो हमारी शिक्षा व्यवस्था रही है उसमें “ क्या सोचना है” पर ध्यान केंद्रित रहा है जबकि इस शिक्षा नीति में “कैसे सोचना है” पर बल दिया जा रहा है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आज देश भर में व्यापक चर्चा हो रही है. विभिन्न विचारधाराओं के लोग अपने विचार प्रकट इस शिक्षा नीति की समीक्षा कर रहे हैं, यह स्वास्थ्य चर्चा है. यह जितनी अधिक होगी उतना ही अधिक लाभ देश को मिलने वाला है.
नई शिक्षा नीति हमें बहुत बदलाव देखने को मिले हैं जो कि शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव माने जा रहे हैं. अब छात्रों को प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होगी. त्रिभाषा फार्मूला को अपनाया गया है, जिससे छात्र का सर्वांगीण विकास संभव हो सकेगा. 10+2 का सिस्टम जो अभी तक बना हुआ था उसे बदलकर 5+3+3+4 में परिवर्तित कर दिया गया है. इसमें पहले 5 वर्ष एक्टिविटी आधारित शिक्षण के माध्यम से छात्रों को सिखाया जाएगा. दूसरे चरण में विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से विज्ञान, गणित, कला आदि की शिक्षा, अगले 3 वर्षों तक छात्रों को दी जाएगी. तीसरे चरण में छात्रों को विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा तथा साथ में है कौशल विकास का पाठ्यक्रम भी छात्रों को अगले 3 वर्षों तक प्रदान किया जाएगा, जिससे छात्र कौशल विकास में दक्ष हो सके. अगले 4 वर्ष, कक्षा 9 से 12वीं तक है, इसमें छात्रों को विषय चुनने की स्वतंत्रता होगी. अपनी क्षमता अनुसार विषय का चुनाव छात्र कर सकेंगे. पहले व्यवस्था यह थी कि छात्र कक्षा 11वीं से विषय चुन सकता था उससे पहले नहीं, अब इस व्यवस्था में बदलाव किया गया है.
नई शिक्षा नीति में शिक्षा क्षेत्र पर देश की जीडीपी का 6% खर्च करने की बात कही गई है जिससे इनोवेशन और रिसर्च को अधिक बल मिल सके. इस शिक्षा नीति में छात्रों में रचनात्मक सोच तार्किक निर्णय नवाचार की भावना को प्रोत्साहित किया गया है. छात्र अपनी क्षमता अनुसार कौशल हासिल कर सकेंगे. किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञ बन सकेंगे. इनोवेशन व रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका की तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा. जो विज्ञान विषय के अतिरिक्त मानविकी के विषयों में भी रिसर्च एवं इनोवेशन को फंड प्रदान करेगा. उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाया जाएगा इसके लिए भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का गठन किया जाएगा. जो छात्र केवल नौकरी के लिए स्नातक करना चाहते हैं वे सभी छात्र 3 वर्षों की स्नातक डिग्री कोर्स कर सकेंगे और जो छात्र रिसर्च करना चाहते हैं वह सभी 4 वर्षीय स्नातक के साथ 1 वर्षीय परास्नातक के बाद सीधे ही पीएचडी कर सकेंगे. अब एमफिल करने की बाध्यता नहीं रहेगी.
नई शिक्षा नीति की विशेषताओं पर विचार करें हमें यह शिक्षा क्षेत्र में बहुत आदर्श स्थिति नजर आती हैं वर्तमान शिक्षा गौर करें तो पता चलेगा कि वर्तमान में हमारे पास उच्च गुणवत्ता वाले सरकारी स्कूल नहीं है. सरकारी स्कूलों के भवन जर्जर स्थिति में बने हुए हैं. हमारे पास शिक्षकों की कमी हर स्तर पर देखने को मिलती है शिक्षकों का प्रशिक्षण वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के लिए पर्याप्त नहीं है. भविष्य की शिक्षा पद्धति के लिए अधिक प्रशिक्षण की आवश्यकता रहेगी.
अंत में यही कहूंगा कि नई शिक्षा नीति अभी देश के समक्ष प्रस्तुत हुई है इसे अभी बहुत ही परीक्षाओं से गुजर कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होगा. जिस उद्देश्य को लेकर यह शिक्षा नीति लाई गई है, वह उद्देश्य अवश्य हीं पूर्ण करेगी. ऐसा हम सभी अपेक्षा करते हैं और निकट भविष्य में 100% साक्षरता का लक्ष्य हम पूर्ण कर सकेंगे. इस शिक्षा नीति से क्षमता पर भेदभाव सबको समान शिक्षा व्यवसाय पर शिक्षा के अवसर प्रदान होंगे. आवश्यकता इस बात की भी है कि इस शिक्षा नीति के लाभ को ईमानदारी के साथ निचले तबके तक पहुंचाना होगा. सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी हमें शिक्षा नीति को ले जाना होगा. नई शिक्षा नीति से भारतीय छात्र विश्व स्तरीय छात्र बन सकेंगे इसकी संभावना प्रबल है..
(मानवेंद्र सिंह)
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