बिक रहीं हैं बेटियां बाजार में, मौन क्यों हैं हम ?

बिक रहीं हैं बेटियां बाजार में, मौन क्यों हैं हम ?

महिला दिवस के मौके पर पर संसद में सिर्फ महिलाओं को बोलने का जो सुझाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तरफ से आया है वह तत्काल महत्व देने वाली बात भर है इसका कोई खास दुरगामी असर महिलाओं के राजनीतिक-सामाजिक स्थिति पर नहीं पड़ेनेवाला। अपने दम पर भले हीं कुछ महिलाएँ आज शीर्ष पदों पर पहुँचकर महिला शक्ति का परचम लहरा रही हों लेकिन सामन्यतः आज भी वो कई पाटो के बीच पिसती नजर आ रही है । महिलाओ के प्रति हो रहे अपराध कम होना तो दूर नित्य नए स्वरुप में सामने आ रहा है । हाल हीं में जाट आंदोलन के दौरान उनके साथ सामुहिक दुराचार होने की बात सामने आई, तो कुछ वर्ष पहले उत्तरांचल की मांग को लेकर आंदोलन कर रहीं महिलाओं पर पुलिसिया दमन और दुराचार की घटनाएं हुए थी । घर से बाहर भीड़ में सरेआम जब जुल्म और अत्याचार हो रहा हो तो चहरदिवारी के अंदर निरक्षर, कमजोर और पुरषों पर आश्रित महिलाओं का हाल समझना मुस्किल नहीं हैं । हालांकि हम तमाम कोशिश कर रहें हैं कि हालात बदले लेकिन परिवर्तन की संतोषप्रद स्थिति अभी कोशों दूर नजर आती है । गरीब और कमजोर वर्ग की महिलाएं आज भी मानव तस्करी की मकड़जाल की गिरफ्त में हैं।

महज 15 साल की उम्र पूरी करने से पहले हीं छत्तीसगढ़ के सितौंगा गांव की एक युवती को पांच बार बेचा गया। उसे छोटे से अंधेरे कमरे में रखा गया, यातना और बलात्कार उसकी नियती बन गई। एक नबालिग लड़की की यह दुर्दशा बयां करती है कि हिन्दुस्तान की बेटियां किस कदर मानव तस्करी के मकड़जाल में उलझकर यातनाओं और दैहिक शोषण की शिकार हो रहीं हैं।

‘जीरो ट्रेफिक’ नाम से प्रकाशित एक रिपोर्ट को माने तो कमोवेश यही हालात देश की 1.6 करोड़ बेटियों की है। शोध से पता चला है कि इतनी बड़ी संख्या में लड़कियों और औरतों को जबरदस्ती जिस्म के बाज़ार में ढ़केला गया है। ‘दसरा’ संस्था द्वारा दिसंबर 2013 में प्रकाशित इस रिपोर्ट की माने तो भारत में तीस लाख महिलायें तो केवल व्यवसायिक यौन क्रियाकलाप के कीचड़ में फसीं हुई हैं। इनमें 60 प्रतिशत लड़कियां 12 से 16 वर्ष की हैं, जिन्हें तस्करी करके इस दलदल में उतारा गया है। रिपोर्ट के अनुसार हिन्दुस्तान में तीन लाख वेश्यालय हैं, जिनमें वेश्यावृति में शामिल महिलाओं के साथ करीब 50 लाख बच्चे भी रहते हैं।

पिछले तीन साल में अकेले झारखंड राज्य में ही तस्करी के मामलों में तीन गुना बढोतरी हुई है। दलालों के चंगुल से आजाद कराये गए लड़कियों और बच्चों के बारे में तो कुछ पता चल भी जाता है, लेकिन जो बचाए नही जा सकते है उनमें से ज्यादातर को उस वीभत्स समाज में परोस दिया जाता जहां उन्हें यौन शोषण के साथ-साथ तमाम तरह के मानसिक और शारीरिक कष्टों को झेलना पड़ता है।

हरियाणा के तो गांव-गांव में ‘पारो’ है। मेव, जाट और अहीर बहुल इलाके में ‘पारो’ का खूब चलन है, जो देश के गरीब इलाके की बेटियां हैं। ‘पारो’ या ‘मोलकी’ का अर्थ है खरीदी हुई। इनका न तो सम्पत्ति में अधिकार है और न ही ये परिवार या समाजिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती हैं। पूरा जीवन बंधुआ दुल्हन एवं यौन गुलामों की तरह बीत जाता है। ऐसी अनेक लड़कियां हैं, जो बिहार, उड़ीसा और बंगाल के गरीब क्षेत्रों से दुल्हन बना कर, तस्करी के जरिए या फिर खरीद कर के लाई गई हैं। हैरानी की बात है कि इस आधुनिक युग में भी चंद पैसों की खातिर बेटियां बिक रही है, उसकी बोली लगाई जाती है। पूर्वी भारत के दूर-दराज इलाके से दुल्हनें 30 से 40 हजार रुपयों में खरीदी जाती हैं। गांवों के गरीब परिवारों की बेटियां इस अमानवीय परिस्थिति की सबसे ज्यादा शिकार होती हैं।

तरक्की की मिशाल पेश करते महानगर, खासकर दिल्ली व मुंबई में लड़कियों व महिलाओं को घरेलु कामकाज के लिए ले जाया जाता है, लेकिन इनमें से अधिकतर को शारीरिक यातनाओं व यौन शोषण को सहना पड़ता है। आदिवासी क्षेत्रों से महानगरों में घरेलु कामकाज के लिए लाई जाने वाली लड़कियों को सुनहरे सपनें दिखाये जाते हैं और अंत में इनमें से बहुतों को दलाल वेश्यावृति के दलदल में फंसा देते हैं।

लड़कियों की तस्करी और देह व्यपार ने तो अब संगठित अंतराष्ट्रीय अपराध का रुप ले लिया है। पहले नेपाल और बांग्लादेश की लड़कियों को ही भारत के जिस्म के बाजार में बेचा जाता था, लेकिन अब तो रसियन फेडरेशन के माफिया भी इस धंधे में उतर आए हैं। ये वो माफिया हैं जो गोवा में गैरकानुनी ढंग से रियल स्टेट और ड्रग्स के कारोबार पर पहले से ही काबिज हैं। युनाइटेड नेशन कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑरगेनाईज्ड क्राइम के मुताबिक इन लोगों ने अपने गैरकानुनी धंधे में अब मानव तस्करी और जिस्म के काले कारोबार को भी शामिल कर लिया है।

देश के प्रसिद्द पर्यटक स्थल पर तो पहले से हीं बदनामी का दाग़ लगा हुआ था, ऐसे में सेक्स के अंतराष्ट्रीय रैकेट, वो भी मानव तस्करी के द्वारा होना अपने आप में चिंता का सबब है। तस्करी कर गोवा के सेक्स बाज़ार में ढकेली जा रही लड़कियों में नाबालिग भी होती है। कई बार पुलिस ने छापे मारकर इन्हें गोवा के तटीय इलाकों से मुक्त कराया है। रमणीय स्थानों पर बिज़नेस कॉन्फ्रेंस और कॉमरशियल इवेन्ट इस काले कारोबार को फैलने मे मददगार साबित हो रहा है। लड़कियों को इवेन्ट मैनेजमैंट एजेन्सीज के माध्यम से भी भर्ती करने का मामला बढ रहा है। हाल हीं में गोवा पुलिस ने अंजुना इलाके से कई लड़कियों को छुड़ाया जिन्हें आन्ध्र प्रदेश की एक फर्टीलाईजर फर्म द्वारा कॉन्फ्रेंस के नाम पर गोवा लाया था।

मतलब साफ है कि भारत की बेटियां बिक रही हैं। गांवों में, गोवा में, बाज़ारों में, चकलाघरों में और मौन हैं हम। इस जुर्म को रोकने के लिए सरकार के तरफ से की जाने वाली कवायद और तमाम व्यवस्थायें नाकाफी साबित हो रहीं हैं। हालात बता रहे हैं कि इस धिनौने ब्यापार का क्षेत्र और व्यापक होता जा रहा है। लड़कियों और नबालिग बच्चियों को पुलिस, दलालों और माफियाओं की सांठ-गांठ से इस दलदल में ढ़केला जा रहा है।

अब वक्त दलील देने का नहीं, दलालों के दमन करने का है, सांठगांठ पर नकेल कसने का है। पुलिस, दलाल और माफियाओं के गठबंधन पर प्रहार कर, आदिवासी और गरीबी क्षेत्र के परिवारों के आर्थिक सामाजिक उत्थान में तेजी लाने का है। देश भर में व्याप्त आर्थिक असमानता, लड़कियों एवं महिलाओं के प्रति वर्षो से चली आ रही सामाजिक असमानता और कुरीतियों को खत्म करने का है। डिमांड सप्लाई की कड़ी को तोड़ने की जरुरत है। महिला आयोग द्वारा सेल बनाने के सुझाव पर जल्द से जल्द अमल करके, लोगों में जागरुकता लाकर, रेस्क्यु ऑपरेशन में तेजी लाकर, खुफिया तंत्र को कारगर मजबुती देकर, संबंधित विभागों में संवेदना जगाकर, छुड़ाए गई लड़कियों एवं महिलाओं को सुरक्षा देकर, शेल्टर एवं पुनर्वास की उचित व्यव्स्था कर, ट्रांजिट प्वाईंट पर नजर रखकर महिलओं और मासूम बच्चियों को जुर्म की इस स्याह दुनिया से बचाया जाय। नबालिगों का यौन व्यव्साय के लिए तस्करी को खत्म करने के लिए कनेडियन इन्टिग्रेटेड एप्रोच से सीख लेकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है। कम से कम महिला दिवस पर हीं सही, इन सवालों का जवाब मन से तलाशने की जरुरत है तभी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो पाएगा।

कवि मैथिलीशरण गुप्त ने स्त्रियों की दशा की तरफ समाज का ध्यान आकर्षित करने के लिए मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ लिखी कि “ अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी “ । माना जाता है कि स्त्रियों ने ही प्रथम सभ्यता की नींव डाली है और उन्होंने ही जंगलों में मारे-मारे भटकते हुए पुरुषों को हाथ पकड़कर अपने स्तर का जीवन प्रदान किया तथा घर में बसाया आज उनकीं स्थिति ऐसी क्यों है कि उनका हाथ पकड़ कर किसी गैर के हाथों उसे बेच दिया जा रहा है । जिस भारत में स्त्रियों को उच्च दर्जा दिया गया, स्त्रियाँ अर्धांगिनी कही गयीं, उन्हें ईश्वरीय शक्ति दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि नारी शक्ति, धन, ज्ञान का प्रतीक माना गया आज उसी भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं अज्ञानता के अंधेर और दमन के काल कोठरी में घुट रहीं हैं ।

वैदिक युग की नारी धीरे-धीरे अपने देवीय पद से नीचे खिसकर मध्यकाल के सामन्तवादी युग में दुर्बल होकर शोषण का शिकार होने लगी। हांलाकि हर युग में समाज सुधारकों ने उनकी दशा सुधारने के लिए सकारात्मक प्रयास किया और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं की स्त्रियों की दशा में थोड़ा बदलाव आया है | भारतीय संविधान के अनुसार उसे पुरुष के समकक्ष अधिकार प्राप्त हुए हैं। और बेशक कानूनी दृष्टि से स्त्रियों को पूर्ण समानता मिल चुकी है लेकिन सिद्धांत और वास्तविकता में अभी भी बहुत अंतर है ।

जब विश्व परिदृष्य तेजी से बदल रहा है वैसे मे आधी आवादी को भी सशक्त करना जरुरी हैं तभी वो देश के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी होगी और अपनी भूमिकाएं निभाएंगी। अशिक्षित महिलाओ को अपने अधिकारों की जानकारी न होना और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना महिला उनके शोषण और दमन का सबसे बड़ा कारण है। गाँवों में नारी की दशा आज भी बेहद ख़राब है गाँवों में नारी शिक्षा का प्रचार प्रसार होने के बावजूद अज्ञानता की कालिमा नहीं मिटी है। आधी आबादी का एक हिस्सा बेबस, गरीब है, जिसकी आंखों में वेदना समाई हुई है, अभावों से जूझती और रूढि़यों में जकड़ी नारियों को लिए चहुंओर से कदम उठाने की जरुरत है।

महिलाओ के लिए अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और उसे कायम रखने के लिए उसका स्वावलंबी और आत्म निर्भर होना बहुत जरूरी है। सालों से चल रहे महिला सशक्तिकरण के अभियानों के बावजूद स्थिति में सुधार होना अभी बांकि है। इन सबके लिए समाज को अपनी सोच और मानसिकता बदलनी होगी, नारी विरोधी व्यव्स्था और कुप्रथाओं को नारी-उत्कर्ष हेतु तिलांजलि देनी ही होगी। समाज में एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जिससे नारी को मात्र भोग्य की वस्तु नही वरण एक जीवंत-मानुषी, जन्मदात्री एवं राष्ट्र की सृजनहार समझा जाये। विकास का माहोल और रास्ता बनाने के साथ-साथ हमें अथर्ववेद के इन पंक्तियों के दर्शन को भी आत्मसात करना होगा तभी हम सही मायने में नारी विकास के सोपान को पा सके सकेंगे

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।

जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।

Leave a Reply