बच्चों की प्रत्यक्ष देखभाल में यदपि माँ सामान्य रूप से अधिक शामिल होती है। तथापि अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैसे परिवार में जहाँ पिता बच्चों की देखभाल में शामिल होते है, वहां बच्चों की परेशानियों का बेहतर इलाज, परिवार में बेहतरीन मनोवैज्ञानिक समायोजन और बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है। वर्ष 1994 में, अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या और विकास सम्मेलन में यौन तथा प्रजनन हेल्थ को बेहतर बनाने के उद्देश्य से बच्चों के लालन-पालन में पुरुषों को शामिल करने पर जोर दिया गया। उस सम्मलेन में यह भी सुझाव दिया गया है कि ऐसे उपाय किए जाने चाहिए जिससे पुरूषों बच्चों के पालन-पोषण में अधिक रुचि दिखाएँ। साथ ही, पुरूषों को अपने यौन तथा प्रजनन से संबंधित व्यवहार जैसे परिवार नियोजन और मातृ एवं बाल स्वास्थ्य के लिए अधिक जिम्मेदार बनाएं।
यदि पुरूष अपने बच्चों के लालन-पालन में सक्रिय रूप से भाग लेता है, तो इससे न केवल वह खुद लाभान्वित होता है, बल्कि परिवार में उसकी पत्नी और बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य क लाभ मिलता है। प्रेगनेंसी और डिलीवरी के दौरान पुरूष अपने जीवन साथी को जरूरी भावात्मक और मनोवैज्ञानिक सहारा दे सकता है। यह सहयोग डिलीवरी के दौरान दर्द, घबराहट और थकावट को कम करने में बहुत कारगर साबित होता है। अध्ययनों से यह बात साबित हुई हैं कि मातृत्व और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रमों में पुरूषों की भागीदारी से प्रेगनेंसी और लेबर के दौरान मातृ और बाल मृत्यु दर को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। पुरूषों की भागीदारी से समय रहते प्रसूति आपात स्थिति से निपटने के लिए जरूरी उपाय किए जा सकते हैं। वैसे पिता जो घरेलू कामों में हाथ बंटाते हैं और बच्चों के साथ समय बिताते हैं, उनमें नकारात्मक स्वास्थ्य व्यवहार विकसित होने की संभावना बहुत कम होती है। साथ ही उनमें मृत्यु और ख़राब स्वास्थ्य का जोखिम भी बहुत कम ( डब्ल्यूएचओ, 2007) रहता है। जिन शिशुओं की देखभाल उनके पिता करते हैं, 6 महीने के बाद उनमें अधिक सोचने-समझने की क्षमता होती है। इसका मतलब है कि वे अन्य बच्चों की तुलना में बेहतर तरीके से सीखने में सक्षम होते हैं। शोध-अध्ययनों से ज्ञात हुआ हैं कि एक वर्ष की आयु के बाद, उनकी उन्नत सोचने-समझने की क्षमता बनी रहती है। ऐसे नन्हें बच्चें बेहतर समस्या सुलझाने वाले होते हैं और 3 वर्ष की आयु के होने पर उनका आईक्यू सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक होता है।
इतना ही नहीं, पिता का सहयोग शिशु को दूध पिलाने में सुधार करने के लिए आवश्यक है। पुरूषों को विशेष रूप से स्तनपान के महत्त्व के बारे में बताने से वे समझते हैं कि शिशु को दूध पिलाने के लिए माँ के साथ सहयोग करना कितना जरूरी है। इससे बच्चों को दूध पिलाने में माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। पोषण शिक्षा देकर शिशु के आहार के बारे हम माता-पिता के ज्ञान को बढ़ा सकते है और उनसे बेहतर तरीके से एक-दूसरे की मदद करने की अपेक्षा कर सकते हैं।
डब्ल्यूएचओ 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक शिशुओं के लिए विशेष और शुरूआती स्तनपान को पूर्ण पोषण के लिए सबसे शक्तिशाली स्रोत माना जाता है। हाल ही में, इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं कि एक पिता स्तनपान और इसे जारी रखने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता हैं। पिता की भागीदारी उनकी पत्नियों के स्तनपान के निर्णयों और व्यवहार को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण होती है। दुनिया भर में स्तनपान को प्रोत्साहित करने और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लेन के उद्देश्य से प्रति वर्ष 1 से 7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है। इसे पहली बार वर्ल्ड एलायंस फॉर ब्रेस्टफीडिंग एक्शन द्वारा वर्ष 1992 में शुरू किया गया। इसके अलावा, बाद में यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ और 120 से अधिक देशों में उनके प्रतिभागी संघ और सरकारें विश्व स्तनपान सप्ताह मना रही हैं। वर्ल्ड एलायंस फॉर ब्रेस्टफीडिंग एक्शन की भी स्थापना 14 फरवरी 1991 में की गई थी। इसका उद्देश्य सहायता देकर दुनिया भर में व्यापक स्तनपान की सोच को बढ़ावा देना है।
सभी माताओं को समझाया जाता हैं कि उन्हें पहले छल महीने तक अपने शिशु को अनिवार्य रूप से स्तनपान कराना चाहिए और फिर एक या दो साल तक पूरक स्तनपान करवाना चाहिए। विश्व स्तनपान सप्ताह 2019 का विषय ‘सशक्त माता’पिता, सक्षम स्तनपान’ था। इसलिए, स्तनपान प्रथाओं के बारे में लैंगिक-समान जागरूकता को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इसमें माता-पिता सकारात्मक भूमिका अदा कर सकते हैं, जो उनके बच्चों का बेहतरीन पोषण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
एक शिशु को स्तनपान करवाना मनोवैज्ञानिक रूप से चुनौतिपूर्ण, शारीरिक रूप से थकाऊ, और कभी-कभी असुविधाजनक भी हो सकता है। लगभग सभी नई माताओं को अपने नवजात शिशु की देखभाल करने की अपनी क्षमता पर संदेह होता है। यहाँ, पिता स्तनपान कराने के लिए अपनी पत्नी का उत्साहवर्द्धन कर सकते हैं। पिता की मौजूदगी और स्तनपान के दौरान अपनी पत्नी और शिशु को स्पर्श करना दोनों को भावात्मक और शारीरिक रूप से पुष्ट करता है। जब भी शिशु जाग रहा होता है, तब पिता अपनी पत्नी के पास स्तनपान करवाने के लिए शिशु को उठाकर ले जा सकता है। वह शिशु के स्तनपान के दौरान उसे अपनी बांहों में उठा कर साइड बदलने में मदद कर सकता है। जब शिशु दूध पीना बंद कर देता है, तो पिता शिशु के सोने तक उसकी देखभाल तक कर सकता है।
स्तनपान के प्रति पिता का ज्ञान और उसकी सोच स्तनपान प्रथाओं की सफलता और प्रोत्साहन के लिए बेहद जरूरी है। लैंगिक रूप से न्यायसम्मत स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान और व्यवहार परिवार के स्वास्थ्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। इसलिए, माता-पिता दोनों को डिलीवरी से पहले परामर्श सत्र में स्तनपान पर चर्चा में शामिल किया जाना चाहिए। स्तनपान की प्रक्रिया में पिता का सहयोग बहुत जरूरी है। जब एकमाँ को उसके पार्टनर का सक्रिय सहयोग और समर्थन मिलता है, तो वह अपने शिशु को सुरक्षित स्तनपान महसूस करती है।
डॉ. बिजयालक्ष्मी पांडा