सहकारिता के रास्ते पर सरकार के लौट आने के संकेत

सहकारिता के रास्ते पर सरकार के लौट आने के संकेत

: आलोक कुमार

योजना आयोग की जगह नीति आयोग का गठन कहीं केंद्रीय ध्रुव पर सहकारिता की वापसी तो नहीं। अगर ऐसा है, तो इसे संजीदगी से समझना होगा। केंद्र सरकार ने नए साल की शुरूआत के साथ प्रतीक्षित नीति आयोग के गठन की घोषणा के साथ ऐलान कर दिया। गजट के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि नीति आयोग सहकारिता के संघीय स्वरूप के आधार पर काम करेगा । सहकारिता का संघीय स्वरूप मतलब यह कॉर्पोरेट संसार की तरह एकल लाभ हानि के तरीके से नहीं बल्कि आपसी सहभागिता की नीति वाले सहकारिता के सिद्धांत पर चलेगा। कहने को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, स्थायी व आमंत्रित सदस्य तो होंगे मगर कोई भी फैसला आयोग में कार्याकारी सदस्य के तौर पर शामिल राज्यों के मुख्यमंत्री एवं केद्रशासित प्रदेशों को उपराज्यपालों की सहमति से ही लिया जा सकेगा।

चौसठ साल पुराने योजना आयोग का अंग्रेजी नाम प्लानिंग कमीशन था। मगर नवगठित नीति आयोग पॉलिसी कमीशन नहीं है। बल्कि नीति शब्द अंग्रेजी के मकसद पूर्ण नाम नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ ट्रांस्फार्मिंग इंडिया का शाब्दिक संक्षिप्त है। नीति आयोग मतलब भारत को परावर्तित करने वाली राष्ट्रीय संस्थान का कमीशन है जो सहकारिता के संघीय अवधारणा पर काम करेगा। नीति आयोग में सहकारिता के भाव सन्निहित होगा।

यह दुनिया के सबसे पुराने सहकारी आंदोलन के तौर पर पहचान रखने वाले भारतीय सहकारी आंदोलन के लिए गर्व का विषय है। देश भर में 25 करोड़ से ज्यादा आबादी सहकारी से जुड़ी है। शत प्रतिशत गांवों तक सहकारिता की पहुंच है। देश वासियों के लिए भोजन का प्रबंध करने वाले किसानों में बीज एवं खाद वितरण, सिंचाई और फसल को मंडी तक पहुंचाने के लिए बनी सहकारी संस्थाओं ने गहरी पैठ बना रखी है। किसानों की मदद में खड़ी सहकारी संस्थाओं ने नई आर्थिक नीति के दौर में बढी उपेक्षा के बीच जैसे तैसे खुद को बचाए रखा है। तथ्यात्मक तौर पर पिछली सरकारों पर सहकारिता के प्रति उपेक्षा का आरोप लगता रहा है।

यही वजह है कि 1991 में नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद से अमूल, इफको या कृभको सरीखा एक भी विशाल सहकारी संस्थान का उदय नजर नहीं आया जिसे दुनिया अनुगामी होने लायक मानती हो। सहकारी संस्थाओं को मदद मिलने के बजाय कटौती का सिलसिला ही जारी रहा है। सन् 2007 से सहकारी संस्थाओं को आयकर में मिलने वाली छूट से वंचित किया जा चुका है। इसकी लंबी लड़ाई के बीच 2012 का साल संविधान संशोधन के जरिए सहकारिता को आम भारतीय के मौलिक अधिकार में शामिल किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम रहा है। मगर निहीत स्वार्थों की वजह से अदालतों में इसे चुनौती मिली जिसकी वजह से धरातल पर इसे लागू नहीं किया जा सका है।

नई सरकार नए नजरिए के साथ आई है। सहकारिता के केंद्रीय मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने सहकारिता को मौलिक अधिकार में शामिल करने के संविधान संशोधन को अदालत में मिल रही चुनौती के खिलाफ सरकार की ओर ठोस रूप में जाने का ऐलान किया है। सहकारिता के मौलिक अधिकार में शामिल हो जाने के बाद अब कोई भी भारतीय अपने उद्यम के लिए साथियों के साथ मिलकर सहकारी संस्था का गठन कर सकता है। न्यूनतम बाईस साथी आपस में मिलकर सहकारी उद्यम की शुरूआत कर सकते हैं। सहकारिता का सिद्धांत है कि सहकारी उद्यम में कोर्पोरेट की तरह किसी एक को लाभ या हानि की बड़ी हिस्सेदारी नहीं मिला करता है। बल्कि सहकारी संस्था के जितने भी सदस्य होते हैं वो उस संस्था में बराबर के लाभ या हानि के शेयरधारक होते हैं।

Leave a Reply