विचित्र है कि सरकार लोकपाल की नियुक्ति पर तो हाथ पर हाथ धरे बैठी है, पर वह तमाम एनजीओ को लोकपाल की जांच के दायरे में लाने के लिए तत्पर है।
पिछली सरकार के समय ही लोकपाल कानून संसद से पारित हो गया था। पर हैरानी की बात है कि लोकपाल संस्था का गठन आज तक नहीं हो पाया है। राजग सरकार को दो साल हो गए। वह लोकपाल की नियुक्ति में भले आनाकानी करती रही हो, पर लोकपाल का दायरा बढ़ाने को जरूर उत्साहित है। उसके ताजा फैसले के मुताबिक विदेशी व घरेलू, दोनों तरह के स्रोतों से वित्तपोषित सभी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) लोकपाल की जांच के दायरे में आएंगे। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के हाल में अधिसूचित नियमों के अनुसार, सरकारी अनुदान के तौर पर दो करोड़ से अधिक की राशि तथ विदेशी दान के रूप में दस लाख रुपए से अधिक राशि प्राप्त करने वाले एनजीओ के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत मिलेगी, तो लोकपाल उसकी जांच कर सकेगा। लोक-हित के दावे के साथ काम कर रही संस्थाओं को जवाबदेह बनाने का मकसद अपने आप में एक नेक मकसद है। पर सरकार का इरादा कहीं एनजीओ पर शिकंजा कसना और उनके लिए काम करना अव्यावहारिक बना देना तो नहीं है!
सभार- जनसत्ता
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